उत्तर प्रदेश में बलात्कार पर राजनीति और इस हद तक गिरी हुई राजनीति... देश के नागरिकों के लिए किसी शर्मिंदगी से कम नहीं। बात माया और रीता की है। आज हम समलैंगिकता जैसे सामाजिक मुद्दे पर भी चर्चा कर रहे हैं। सामाजिक बदलाव की चली बयार में जहां कोर्ट ने भी इस बात की किसी कोने में मंजूरी दे दी है मगर यह अफसोसजनक है कि गांधी जी के अंहिसात्मक आंदोलन की पृष्ठभूमि में तैयार लोकतांत्रिक प्रणाली का अनुसरण करने वाले देश में लोक और तंत्र अलग-थलग पड़ा दिखाई जान पड़ता है।दर्द यह है कि मात्र कुछ खद्दरधारी, वर्दीधारी, पदवीधारी और अधिकारी-कर्मचारी अपने निहित स्वार्थार्थ देश की तरक्की में बाधक बने हुए हैं। इन लोगों का ताना-बाना न्याय की आस लगाए लोगों को इतने दांव-पेंच में उलझा डालता है कि इससे आजिज आकर कहीं कोई आदमी वकील के चैंबर में ही खुद को बम लगाकर मार डालता है। इस तरह के अनगिनत उदाहरण हैं कि देश में लाखों मौत मात्र इन्हीं दांव-पेंचों की वजह से होती।
बड़ी बात कोई असर क्यों नहीं करती, यह उलझन रहती है। फिलहाल कारण साफ है कि अज्ञात आम आदमी हतोत्साहित, निरुत्साहित और प्रताड़ित हो अकेला महसूस करता है और उसका स्वाभिमान उसे जीने नहीं देता। इसके बाद ऐसे कदम को उठाने को मजबूर हो जाता है।
हाल की यह घटना आज मामूली है, किसी मीडिया वाले ने इस पर गौर नहीं किया। इस पर किसी ने चर्चा नहीं की। किसी के लिए यह मुद्दा नहीं बना। शायद टीआरपी नहीं होगी मगर भविष्य ऐसे ही माध्यम का होगा जो आम आदमी के भीतर प्रताड़ना से उबाल मार रहे गुबार को समझे और उसे सही मंच पर उठाकर आवाज दे। हो सके तो पत्रकारिता के सही मायनों को एक बार फिर संवेदनशील बनाकर जीवित करने की पहल की जाए। यह इसलिए भी जरूरी ताकि जीवन की भागदौड़ में मशगूल शहरी को संवेदनशील बनाकर उसे उसी के हक की लड़ाई लड़ने के लिए जागृत किया जा सके। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में स्थिति का विस्फोटक होना तय जान पड़ता है।
कोई इस बात को समझने की कोई कोशिश नहीं कर रहा कि कोर्ट परिसर में खुद को बम लगाकर उड़ाने वाले कोई आत्मघाती तालिबानी या लिट्टे का सदस्य नहीं है, इसका मस्तिष्क परिवर्तन एक आत्मघाती आतंकी के रूप में नहीं किया गया, फिर भी आखिर क्यों इस आम आदमी को यह कदम उठाना पड़ा। उम्मीद की जा सकती है कि समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार से जन्मी वेदनाओं और अघोषित 'लाचारी' ने इस आम आदमी को चारों ओर से घेरा होगा तब जाकर उसने अपनी इहलोक की लीला समाप्त करने का मन बनाया होगा। हां, यह जरूर है कि इसी तंत्र के लोग उसे दिमागी रूप से पीड़ित बता देंगे, मगर एक भला मानुष क्यों इस स्तर पर पहुंचा इसका जवाब कोई नहीं देगा।अब एक और दर्दनाक घटना रोहतक की जिस पर मीडिया ने 'चुस्की' के साथ खबर भी दिखाई कि महिला का बलात्कार कुछ अधिकारी करते हैं और तीन साल तक न्याय की आस में दर-दर भटकने के बाद लाचार दंपति ने सरकारी कार्यालय में आत्महत्या का प्रयास किया। पीड़िता तो मर गई पति बच गया और अब अपनी ही पत्नी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में जेल में है। दो बच्चियां दो महीनों से भी अधिक समय से धूप-छांव को भूल सड़क के किनारे अपने बूढ़े दादी-दादा के साथ इंसाफ की लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए धरने पर बैठ गईं। पिता की रिहाई की मांग है... मगर 'अंधा, बहरा और निरंकुश हो चुका प्रशासन बर्बरता की कहानी को इतिहास के ऐसे पन्ने में छुपाने की बेशर्मी से कोशिश में लगा है ताकि कहीं कभी कोई परिस्थिति न बन जाए कि नाम बदनाम हो जाए। मीडिया ने बच्चों का रोना देखा, दिखाया और दो महीनों से अधिक समय सड़क के किनारे गुजार चुके बच्चों की बदौलत असमंजस में पड़े प्रशासन ने बच्चियों को रात के अंधेरे में उठवा लिया और अन्यत्र कहीं भेज दिया ताकि मीडिया की बोलती भी बंद हो जाए। इस पूरे घटनाक्रम में निष्पक्ष जांच की मांग है जो पूरी करने के बजाय मामला दबाने का सरेआम प्रयास जारी है।
आम आदमी की मौत आसान बन गई जो कभी सही मायनों में खबर नहीं बन पाई। मगर इसके पीछे व्याप्त संदेश को देखने का कोई प्रयास नहीं कर रहा है। देश में चारों ओर आम आदमी के भीतर असुरक्षा, अपमान, निराशा का अंधकार, असंतोष आदि घर करता जा रहा है और गांव के गांव, शहर के शहर अशांत होते जा रहे हैं। नक्सलवादियों, अलगाववादियों, प्रांतवादियों और भाषावाद करने वालों को समर्थन भी इन्हीं में किसी कारण की वजह से मिल रहा है।
कहीं न कहीं कथित रूप से लोकतांत्रिक सरकारों और उनके मातहत काम करने वाले शासन और प्रशासन के अधिकारी के प्रति विश्वास में लगातार कमी होती जा रही है।आजाद देश में ऐसी लाचारी की कल्पना शायद की किसी आजादी के मतवाले ने की होगी मगर सांसदों, विधायकों, सभासदों, नगरसेवकों और अन्य छुटभैये नेताओं की नजर में यह दर्द किसी काम का नहीं है। बड़ी-बड़ी पार्टी के नेता मुद्दे तलाशते हैं मगर जनहित में एक भी ऐसा काम नहीं करते की उन आत्माओं को शांति मिले जो हंसते-हंसते स्वराज की कामना लिए बलि की वेदी पर चढ़ गए।खबरें, जिनको उद्धृत किया गया है।
http://khabar.ndtv.com/2009/08/20132836/Rohtak-story.html http://khabar.ndtv.com/2009/07/10195954/Arrah-court.html
http://khabar.ndtv.com/2009/07/17153735/Reeta-story.html
http://khabar.ndtv.com/2009/07/17110515/Mayawati-story.html
http://khabar.ndtv.com/2009/07/20110956/Intezaar-Abidi.html
http://khabar.ndtv.com/2009/07/16164431/Maya-old-stmt.html
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