Sunday, February 7, 2010

राहुल के दौरे ने बढ़ाया शाहरुख का कद

राहुल गांधी का मुंबई का दौरा पूरा हो गया और यह भी साबित कर दिया गया कि शिव सेना का शेर बूढ़ा हो गया है और उसकी दहाड़ का असर भी फीका पड़ गया है। कांग्रेस पार्टी के युवराज का स्वागत और सुरक्षा का ऐसा इंतजाम था कि दशकों से मुंबई की सड़कों पर आतंक का नाम बन चुके शिव सैनिकों को आखिर पहाड़ के नीचे आना ही पड़ा। परिणाम साफ है कि एक समय जावेद मियांदाद की पाकिस्तान के साथ भारत में क्रिकेट खेलने देने की अनुमति (असंवैधानिक और गैर-सरकारी) का हक रखने वाले बाल ठाकरे और उनके कदमों पर चलने का प्रयास करने वाले पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं।

मुंबई के इतिहास में यह पहला अवसर है कि मराठीवाद का नारा बुलंद करने वाली पार्टी को शिकस्त खानी पड़ी है। इस में सबसे अहम बात यह है कि मरने मारने को तैयार मराठी का परचम लहराने वाले किसी भी शख्स का एक बूंद खून नहीं बहा। इतिहास गवाह है कि मुंबई (पहले के बॉम्बे) के गुजरात में शामिल किए जाने के मोरारजी देसाई के प्रयास के खिलाफ सम्युक्त महाराष्ट्र समिति की मुहिम में हजारों मराठी सड़कों पर उतर आए और 105 मराठियों ने अपना बलिदान भी दिया। मराठियों की नाराजगी को शांत करने के लिए एक मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा और एक मराठा मुख्यमंत्री वाईबी चव्हाण की ताजपोशी भी हो गई। आज शिव सेना हार गई है और अब यह भी कह दिया है कि शाहरुख खान की फिल्म माई नेम इज़ खान की रिलीज और सिनेमाघरों में चलने देने में किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान पैदा नहीं करेगी। यह स्थिति तब आई है जब कुछ दिनों पहले ही शाहरुख ने गला भरके फिल्म के प्रोड्यूसर करन जौहर और अभिनेत्री काजोल से माफी मांगी।

शाहरुख ने माफी नहीं मांगी और विदेश दौरे के बाद जब वो मुंबई में लौटे तो परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था और जो शाहरुख न्यूयॉर्क में उतरे चेहरे के साथ साथियों से माफी मांग रहे थे, के चेहरे पर आत्म-विश्वास और जीत की चमक दिखी। सरकारी डंडे का इस्तेमाल कुछ इस तरह हो चुका था कि मुंबई में जिसकी दहाड़ सिनेमाघरों से फिल्म तो उतरवा देती थी और यहां तक की पोस्टर तक नहीं बचते थे से बात करने की शाहरुख ने बात कह दी। राहुल की मुंबई दौरे की धमक ने शाहरुख का कद बढ़ा दिया। जी हां, मुंबई में बाला साहब की बराबरी करना किसी भी दिग्गज के लिए सोचना भी बड़ी बात होती है। मगर, यह बॉलीवुड के बादशाह के लिए यह हकीकत बन गया है। इतनी बड़ी जीत के बाद भी शाहरुख कुछ तो डरे हुए हैं ही, जो यह भी कहते हैं कि यदि बातचीत का बुलावा आया तो वह मातोश्री जरूर जाएंगे।

राजनीतिक गलियारों में यह साफ तौर पर प्रश्न उठ रहा है कि आखिर हिन्दी बोलने के लिए दिया गया जया बच्चन और प्रियंका चोपड़ा का बयान कहां तक गलत था कि महाराष्ट्र का नवनिर्माण करने की विचारधारा लिए मनसे के निशाने पर बिग बी आ गए और हफ्तों पूरे भारत वर्ष के सामने बिग बी और परिवार की धज्जियां उड़ती रहीं और एक राहुल को बॉलीवुड का इतना भी मान रखना नहीं आया कि बिग बी के समर्थन में एक बयान देते। यह पूरा बॉलीवुड भी शांत था। तब किसी के मुंह से बॉलीवुड के शहंशाह के सहानुभूति का एक शब्द भी न आया। इनमें वो तमाम नाम शामिल है जो अपने को बादशाह, बाजीगर, वीर, शबाना, अगैरा-वगैरा आदि। दिल्ली की सियासत से जुड़े कई दिग्गजों ने भी जरूरत नहीं समझी कि इस मामले में कुछ कहते। कारण सबको पता है कि कभी गांधी परिवार के करीबी रहे बच्चन परिवार की करीबी समादवादी पार्टी हो गई थी। और सपा को राजनीतिक लाभ न मिल जाए इसलिए कानून और संविधान की मूल भावनाओं का खुलेआम कत्ल होता रहा है। इस बात से स्टार ऑफ दि मिलेनियम के खिताब से नवाजे जा चुके अमिताभ बच्चन को भी एहसास हो गया कि वह भी एक आम आदमी ही हैं और देश में किसी को खास भले ही जनता बनाती हो मगर जब कानून की बात आती है तो शासन प्रशासन से नजदीकियों के साथ किस राजनीतिक आका के आप करीबी हैं यह भी खास रहती है। अंतत: बिग बी ने सरे आम बयान के लिए माफी मांगी और तमाम तरह के प्रहारों को शांत किया। इतना काफी नहीं था कि अब बिग बी अपनी फिल्म को दिखाने के लिए मातोश्री भी जाने को तैयार रहते हैं। और तो और अब उनकी कंपनी मराठी में भी फिल्मों के प्रोडक्शन की तैयारी कर चुकी है।

मुंबई के संजय निरूपम जो अभी कुछ दिन पूर्व ही राहुल को काले झंडे दिखाने के बाला साहब के फरमान पर हाथों में चूड़ी न पहने होने की बात चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे तब कहां दुबक कर बैठ गए थे जब टीवी कैमरों के सामने मनसे के गुंडे बिहार-यूपी के लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर सड़कों पर पीट रहे थे। दूसरा अहम प्रश्न जो अब जब भी किसी कांग्रेसी नेता के सामने उठाया जाता है तो वह बगले झांकने लगते हैं कि आखिर जो सुरक्षा व्यवस्था राहुल गांधी के लिए की गई थी क्या वह एक परीक्षा के समय नहीं की जा सकती थी। पूरे महाराष्ट्र में यूपी-बिहार से आकर रह रहे मेहनतकश हजारों लोगों को सरेराह पीटा गया और सैकड़ों की बलि चढ़ा दी गई। लाशों के ढेर पर की गई यह राजनीति आने वाले में समय में सिख दंगों के दंश की तरह कांग्रेस पार्टी को सताती रहेगी। यहां उत्तर भारतीयों की सुरक्षा की गारंटी ठीक उसी प्रकार दी गई जैसे की बाबरी मस्जिद के विध्वंश के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने दी थी। कल्याण जानबूझकर फेल हुए और सीना ठोंक कर कहा कि वह इसके अंजाम के लिए तैयार हैं और अंजाम आज यह है कि राजनीति में शिखर पर रहे कल्याण आज हाशिए पर पहुंच गए हैं। कोई पार्टी उन्हें लेने को तैयार नहीं है।

टीवी मीडिया भले ही राहुल के बिहार दौरे की बहुत अच्छी और कुछ बुरी तस्वीरें ही प्रस्तुत कर पाया हो मगर यह भी बड़ा सच है कि कई स्थानों पर राहुल इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पाए और लोगों के कोपभाजन का शिकार भी हुए।

जहां महाराष्ट्र की राजनीति का सवाल है बिना किसी अपवाद के यह जगजाहिर है कि मराठा कार्ड महाराष्ट्र की राजनीति का अहम हिस्सा है और एक भी पार्टी ऐसी नहीं जो यह कार्ड न खेलती हो। यह पहली बार हुआ है कि एक बाहरी (राहुल गांधी) जो मुंबई में आया हो औरकामयाबी से अपना काम करके चला गया। यह घटना देश की राजनीति पर दूरगामी असर डालेगी और साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति में जल्द ही नए समीकरण का खुलासा भी करेगी।

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