Saturday, November 23, 2019

जनता के जनादेश का क्या अपमान हुआ, लोकतंत्र जीत गया!

Maharashtra Politics - Mandate, constitution and politics

महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार का गठन हो गया है. एनसीपी नेता और पार्टी प्रमुख के भतीजे अजित पवार ने सीएम देवेंद्र फड़णवीस के बाद डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. इसी के साथ महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल सा आ गया. सुबह सुबह यह खबर टीवी चैनलों के माध्यम से लोगों के बीच तो पहुंची ही साथ ही राजनीति के रणनीतिकारों के कानों में भी ऐसी पड़ी कि लोगों की नींद उड़ गई. केंद्र में विपक्षी दल जैसे कांग्रेस, एनसीपी और अब शिवसेना भी जो राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाती हैं, को मानो बिजली का झटका लगा हो. सुबह सुबह इस बिजली के झटके पार्टी के आलाकमान को नींद में झकझोरा और पार्टी नेताओं को कुछ समझ में नहीं आया. पार्टी की आपातकालीन बैठक बुला ली गई. यह सब इन नेताओं के भौचक्के रह जाने का परिचायक है. विपक्षी दल राज्य में एक महीने से सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. रोज़-रोज़ नई नई शर्तें और राजनीतिक मांगें छन छन कर लोगों के बीच आ रही थी. राजनीति में डील सभी जानते हैं लेकिन डील फाइनल नहीं हो पाई और आज सुबह रात की डील ने गुल खिला दिए.

राजनीति के पंडित भी यह समझ और जान नहीं पाए कि आखिर बीजेपी ने एनसीपी के भीतर तक अपनी पैठ बना ली और सरकार गठन में बाजी मार ली. इस पूरे प्रकरण में मीडिया भी धोखे और गफलत में चलता रहा है. जो दिख रहा था उसे बेच रहा था और पत्रकारों के हाथ कुछ नहीं आया. कई ऐसे पत्रकार जो अपने को खबरों का बेहतरीन स्रोत बताते और मानते चले आए उनके मुंह पर भी ताला लग गया. कोई चैनल यह नहीं घोषणा कर पाया कि क्या होने वाला है. सच्चाई तो यहीं है. यह अलग बात है कि अब कुछ अपने को सबसे आगे, सबसे पहले होने का दावा जरूर करेंगे.

लेकिन देश की राजनीति में महाराष्ट्र में यह सरकार का गठन किसी को यह कहने का हक नहीं दे रहा है कि यह जनता के मत का अपमान है. जो कुछ भी पिछले कुछ हफ्तों से लोग देख रहे थे वह देश की राजनीति के काले अध्याय का ही सच था. पहले शिवसेना और बीजेपी के बीच जो भी चला और फिर दोनों में एक दूसरे से दूरी और फिर शिवसेना का कांग्रेस और एनसीपी के दरबार में पहुंचना.
इस सब पर भी लोग देखते रह गए कि क्या क्या डील हो रही है. मीडिया में तमाम खबरें सूत्रों के हवाले से आ रही थीं. कौन क्या मांग रहा है, कौन क्या चाह रहा है. यह सब सामने आ रहा था. सब सूत्रों के हवाले से  आ रहा था और किसी पार्टी के बड़े नेता ने कोई खंडन नहीं किया. यानी सब सच था.

इन सबके बीच जनता के जनादेश का क्या अपमान हुआ. क्या लोकतंत्र की जीत हुई है. क्या देश का संविधान जीत गया. एक बार फिर इन्हीं प्रश्नों और इसके जवाबों के बीच जनता उलझी रहेगी. हल फिर एक बार किसी और चुनाव के नतीजों में देखने को मिलेगा. मिलेगा भी, या नहीं...

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