Thursday, July 8, 2010
जनता के पैसों पर सरकारी ऐश का नज़ारा जारी
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को पेट्रोल की कीमत को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करते हुए डीजल, केरोसीन और रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की। अब पेट्रोल 3.50 रूपये प्रति लीटर, डीजल दो रूपये प्रति लीटर, केरोसीन तीन रूपये प्रति लीटर और रसोई गैस 35 रूपये प्रति सिलेंडर महंगे हो गए हैं। नई दरें शुक्रवार आधी रात से लागू हो गईं।राजनीतिक दलों को एक जाना पहचाना से मुद्दा मिल गया और शुरू हो गया चैनलों में इंटरव्यू, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें छपवाने और बयानबाजी करने का दौर। दिल्ली में भाजपा के नेताओं का ढोंग तो एक चैनल में साफ देखने को मिल गया। दिल्ली सरकार द्वारा लोगों के 'अवैध' मकान ढहाए जाने से नाराज़ लोग जहां विरोध प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे वहीं भाजपा नेता बीच में महंगाई के विरोध में एक पोस्टर लेकर कैमरे के सामने खड़े हो गए। बड़ी बेशर्मी और चालाकी के साथ जनता को मूर्ख बनाया जा रहा था। भीड़ में शामिल लोगों को तो यह भी आभास न था कि वे किसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। महंगाई के विरोध में या फिर मकान ढहाए जाने के विरोध में। राजनीतिक पार्टियों का स्तर इतना गिर जाएगा किसी ने सोचा नहीं होगा।दिल्ली में और देश के गैर-भाजपा शासित राज्यों में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने चक्का जाम किया और प्रदर्शन किया। मेरठ के समीप ब्रिजपुर रेलवे स्टेशन पर भाजपा नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने किसानों के साथ मिलकर ट्रेन तक रोक दी। इससे इस महत्वपूर्ण मार्ग पर ट्रेनों का आवागमन दो घंटों तक बाधित रहा। वहीं, जनता इससे और परेशान हुई। भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन जैसे एक ढकोसला सा प्रतीत हुआ। सिर्फ टीवी कैमरों, फोटोग्राफरों और पत्रकारों को दिखाने के लिए रहा हो।पिछले दो सालों से सरकार लगातार महंगाई को कम करने का दावा कर रही है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री तक ने कई बार सुविचारित घोषणा की कि महंगाई अमुक महीने में नियंत्रित हो जाएगी। अर्थव्यवस्था घोषणाओं पर आधारित नहीं होती। शायद इसीलिए खाद्य मुद्रास्फीति की दर रुकने का नाम भी नहीं ले रही है। पिछले दो साल में ही चीनी दोगुने दाम पर पहुंच गई है। जहां तक पेट्रोल और डीजल की बात है तो मात्र एक वर्ष में ही सरकार ने चार बार कीमतें बढ़ाई हैं। इनकी कीमतों में 27 फीसदी से लेकर 30 फीसद तक की बढ़ोतरी की गई है। यानि यह साफ है कि सरकार का महंगाई से कोई लेना देना ही नहीं है। ईंधन के दाम में बढ़ोतरी से ट्रांस्पोर्ट का दाम बढ़ेगा। ट्रांस्पोर्टरों ने साफ तौर पर 15 फीसदी किराए में बढ़ाने की एकतरफा घोषणा कर दी है। इसका अर्थ साफ है कि महंगाई सीधे तौर पर 15 फीसद तो बढ़ ही जाएगी।अब एक नजर पिछले दो साल में महंगाई बढ़ने के कुछ अन्य आंकड़ों पर डालते हैं। खाद्य पदार्थ : 7.02% (वर्ष 2007 में) से 17.41% जनवरी 2010 में। खाद्य उत्पाद : 3.43% (वर्ष 2007 में) से 22.55% जनवरी 2010 में। खाद्य वस्तुएं: 5.60% (वर्ष 2007 में) से 19.42% जनवरी 2010 में। खाद्यान्न : 6.27% (वर्ष 2007 में) से 17.89% जनवरी 2010 में। अन्न : 6.27% (वर्ष 2007 में) से 13.69% जनवरी 2010 में। दालें : 2.14% (वर्ष 2007 में) से 45.62% जनवरी 2010 में। चावल : 6.05% (वर्ष 2007 में) से 12.02% जनवरी 2010 में। गेहूं : 6.77% (वर्ष 2007 में) से 14.86% जनवरी 2010 में। दुग्ध उत्पाद : 6.08% (वर्ष 2007 में) से 12.87% जनवरी 2010 में। अंडे, मछली और मीट : 6.38% (वर्ष 2007 में) से 30.71% जनवरी 2010 में। चीनी : (-)14.69% (वर्ष 2007 में) से 58.94% जनवरी 2010 में। छठे वेतन आयोग के लागू होने के बाद से सरकारी कर्मचारियों की मौज हो गई। उनकी तनख्वाह के साथ ही तमाम तरह की सरकारी सुविधाओं की गिनती नहीं है। उनका कोई मोल भी नहीं है। यह सब मौज उन करदाताओं की गाढ़ी कमाई पर हो रहा है जो इस महंगाई और मंदी की मार के वास्तविक वाहक है। वहीं निजी क्षेत्र में काम करने वालों के लिए तो पैकेज ही सबकुछ है। उसी में सारी सुविधाएं सम्मिलित होती है। आंकड़े को देखकर साफ है कि महंगाई का सर्वाधिक बोझ आम आदमी पर ही पड़ेगा। नौकरशाहों से लेकर तमाम सरकारी गाड़ियों में घूमने वालों का खर्चा तो सरकारी खजाने से आ ही जाएगा। मगर उनका क्या जिन्हें अपने पैकेज से ही इसका खर्चा उठाना पड़ेगा।पांच साल में 32 बार कीमतें बढ़ने का अर्थ है कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमत अब दो गुना से ज़्यादा बढ़ गई हैं। वर्तमान पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा हमेशा से ही कीमतें बढ़ाने की वकालत करते आ रहे हैं। जब मौका मिला तपाक से कीमत बढ़ा दी। आज तेल के दाम बाजार पर सीधे निर्भर हो गए। सरकार ने अपना नियंत्रण पूरी तरह से हटा लिया है। ऐसे में देवड़ा साहब का मंदी के समय पत्रकारों को दिया जवाब याद आ रहा है। मंदी के समय जब तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत करीब 60 डॉलर प्रति बैरल पहुंची थी और भारत में तब भी उपभोक्ताओं से ज्यादा कीमत वसूली जा रही थी तब श्रीमान देवड़ा साहब कई दिनों तक मीडिया के सामने हंसने (रोने का काम तो अकसर करते रहते हैं) तक नहीं आए। आखिर मीडिया ने जब घेरकर इस बारे में जानकारी मांगी तब उनका कहना था कि सरकार घाटा पूर्ति कर रही है। आम आदमी और देश में गरीबों का इससे ज्यादा मजाक क्या उड़ाया जाएगा कि सरकार मंदी में भी त्राही-त्राही कर रही जनता की जेब से पैसा निकालने में पीछे नहीं रही। मंदी के दौर में लाखों युवकों (निजी क्षेत्र में) की नौकरी चली गई और लाखों के पैकेज में कटौती कर दी गई फिर भी सरकार का सार्वजनिक निकम्मापन बेशर्मी के साथ जारी है।ईंधन की कीमतों का सच यह है कि आधे से ज्यादा रुपया तो टैक्स के रूप में वसूला जाता है। आज पेट्रोल की वास्तविक कीमत 22-25 रुपये होनी चाहिए। वह आज 50-55 है क्योंकि सरकारी कर भारी मात्रा में है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है। यदि बाजार में तेल की कीमत 51.90 पैसा है तो वह इस कीमत पर कैसे पहुंचा। इसके ब्रेक अप पर एक नजर : तेल का मूल दाम - 21.93 रुपये। इस पर एक्साइज ड्यूटी लगी 14.35 पैसे। इसी के साथ इस पर एजूकेशन टैक्स लगा 0.43 रुपये। डीलर का कमीशन हुआ 1.05 रुपये। सरकारी वैट लगा 5.50 रुपये। क्रूड कस्टम ड्यूटी लगी 1.54 रुपये। ट्रांस्पोर्टेशन चार्ज लगा 6.00 रुपये। इन सब को मिलाकर एक लीटर पेट्रोल का दाम 51.90 पैसे हो गया। इस पूरे गुणा भाग से यह तो साबित हो जाता है कि पेट्रोल का जितना दाम है उतना ही सरकार का टैक्स इस पर लगता है।राजनीतिक बेशर्मी की एक बानगी यह भी। सरकार के घटक दल जो भीतर तो ईंधन बढ़ोतरी का समर्थन चुके हैं बाहर आकर घोषणा करते हैं कि हम इसके विरोध में हैं। खैर, ममता बनर्जी का दोमुंहापन भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है। वह पहले भी ऐसा ही करती रही हैं। वैसे भी बंगाल में निकाय चुनाव से पूर्व ही सरकार इस निर्णय तक पहुंच गई थी किंतु चुनाव पर प्रतिकूल असर न पड़े इसके लिए ममता दीदी ने सरकार के भीतर ही ऐसा करने की मनाही कर दी थी। फिर अब क्या हुआ जो बाहर तो विरोध दिखा रही हैं और भीतर से सरकार को समर्थन जारी है। महंगाई पर हैदराबाद में भी प्रदर्शन हुआ और एक पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारियां भी दीं।आम आदमी की बात करने वाली सरकारी नुमाइंदे तो खास होते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार का इतना बोलबाला है कि हजारों में तनख्वाह पाने वाले चंद सालों में करोड़ों में खेलने लगते हैं। उन्हें खाने की तकलीफ कहां। वहीं, आम आदमी की रोटी महंगी होती जा रही है। थाली में पहले दाल की कटोरी छोटी हो गई। सब्जी की खपत कम करनी पड़ी। अब हाल दाल या फिर सब्जी पर आ गया है। महंगाई का आलम यह है कि बेफिक्री खर्चा करने वालों का भी बजट बिगड़ गया है। हास्यास्पद तो तब लगता है जब तमाम जनविरोधी मुद्दों पर कांग्रसनीत यूपीए गठबंधन की सरकार की मुख्य पार्टी कांग्रेस भी बकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाकर ऐसे गंभीर मसलों पर सरकार से इत्तेफाक नहीं रखने का राग अलापती हैं। शायद वह सही हैं कि जनता मूर्ख है और सरकारी निर्णय को कांग्रेस पार्टी का निर्णय नहीं मानेंगी। राजनीति, वोट बैंक का चक्कर इस हद तक गिर गया है कि आम आदमी का दर्द समझने की जरूरत तक महसूस नहीं होती। इसीलिये कहा गया है कि जाके पांव न फ़टी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई। इस बार वाक्युद्ध में पीएम मनमोहन सिंह भी उतर आए हैं और साथ ही ईंधन की बढ़ाई गई कीमतों को न्यायोचित ठहरा रहे हैं। कह रहे हैं कि जनता सब समझती है। जी हां, कह सकते हैं कि जनता समझती है कि पीएम साहब को बाजार गए एक युग बीत चुका है।इस समय महंगाई की मार जनता पर देने के एक मायना और निकाला जा सकता है। भोपाल कांड में कांग्रेस कुछ इस तरह उलझती जा रही थी कि बचने का कोई रास्ता ही दिखाई नहीं दे रहा था। आरोप की सुई सीधे कांग्रेस के पूर्व वफादार और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की घूमी ही साथ सीआईए की तब की रिपोर्ट ने केंद्र की सरकार पर भी इसका जिम्मेदारी डाल दी। हादसे के समय देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री हुआ करते थे साथ राजीव गांधी के पास विदेश मंत्रालय भी था। हादसे के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से एंडरसन की मुलाकात स्पष्ट नहीं है किंतु ज्ञानी जी के सचिव रहे तरलोचन सिंह का बयान कि विदेश मंत्रालय चाहता तो यह संभव था मामले को कुछ उलझा जरूर देता है। इतने गंभीर मसले से मीडिया को निकालने और देश की जनता का ध्यान बंटाने के लिए कहीं इतनी महंगाई तो नहीं कर दी गई है। अब हजारों की मौत और लाखों को जिंदा पीड़ित छोड़ने वाली घटना को लोग भूल जाएंगे और करोड़ों को एक साथ लील जाने वाले महंगाई के लिए त्राहीमाम-त्राहीमाम करने लगेंगे। संदेश साफ है लोग रोटी की जुगाड़ में व्यस्त हो जाएं, देश, समाज की चिंता छोड़ सरकार को अपना कामकाज मनमाने ढंग से आगे भी करने दें।
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