Wednesday, July 21, 2010

आत्महत्या : घरवाले बन गए दुनियावाले

आज फिर कोई तनहा सिसक रहा होगा
दुनिया से नजर बचा रहा होगा,
तकिये में मुंह छुपा आंसू बहा रहा होगा,
चीखना चाहता होगा, चीख न रहा होगा।
हो गए हैं बाकी सब मस्त,
नहीं देख रहें हैं कि वो है पस्त,
अब घरवाले दुनियावाले बन गए हैं।
करीब के रिश्ते दूर के हो गए हैं।
भाई बहन दोस्त यार मतलब के हो गए हैं।
हंसे, इठलाए होंगे, दर्द कोई बांट नहीं रहा होगा।
चारों ओर से अकेलापन साल रहा होगा।
जीवन में आगे अंधकार नज़र आ रहा होगा।
कोई चारा बाकी नज़र नहीं आ रहा होगा।
जीवन के हर पहलू में हारा तड़प रहा होगा।
रास्ता कोई सूझ रहा न होगा...
हर एक सांस एक बोझ बन गया होगा।
जिन्दगी की लड़ाई हार गया होगा।

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