Saturday, July 10, 2010

कहीं 'बेवफाई' का इल्ज़ाम न लग जाए इन पर...

भोपाल गैस त्रासदी की घटना को 25 बरस ज्यादा हो रहे हैं और आज भी यह तय नहीं हो पा रहा कि आखिर मानव इतिहास में हजारों लोगों का नरसंहार और लाखों को पीड़ित अवस्था में छोड़ने वाली इस औद्योगिक आपदा का जिम्मेदार कौन है? भारतीय न्यायिक प्रक्रिया और जांच एजेंसियां एक बार फिर कठघरे में हैं और उनकी कार्यप्रणाली का खोखलापन भी उजागर हुआ है। साथ ही राज्य व केंद्र सरकारों का रवैया भी सजग देशवासियों को साल रहा है। वहीं, इस मामले में अब तक की प्रगति यह साबित करती है कि सत्ताधारियों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह जो चाहे कर सकते हैं और जनता सिसकने, मूकदर्शक बने रहने तथा सशक्त पर्याय उपलब्ध न होने कारण अलावा कुछ नहीं कर सका।
कुछ दिनों पूर्व तक भोपाल का मामला मानों सिर्फ मुआवजे की लड़ाई, नई दिल्ली तथा भोपाल में छिटपुट प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं जान पड़ रहा था। अब राजनीति के दिग्गजों को आरोप-प्रत्यारोप का मौका मिल गया है और इसी के साथ दौर शुरू हुआ है अपनी पुरानी रंजिश का हिसाब चुकता करने का। एक-दूसरे पर 'लालची' (पद के दुरुपयोग) होने तक के आरोप बेखौफ लगाए जा रहे हैं। अब तक के पूरे घटनाक्रम पर नज़र दौड़ाई जाए तो यह बात साफ प्रतीत होती है कि कोई न कोई दोषी है और मामले में भीतर की बात के ख़बरी उन लोगों का नाम भी जानते हैं और उसे पहचानते भी हैं लेकिन राजनीति के ये दिग्गज अपने ऊपर 'बेवफाई' का इल्ज़ाम नहीं लगवाना चाहते।
23 साल से मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में चल रहे प्रकरण पर सोमवार सात जून को फैसला आया। इस घटना के लिए अदालत ने कुल आठ लोगों को इसका दोषी माना। अदालत ने इस मामले में सभी आठ आरोपियों केशव महिंद्रा, विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केबी शेट्टी, एसवाई कुरैशी और यूनियन कार्बाइड इंडिया को 304 (ए) के तहत दोषी करार दिया। इस फैसले में सात आरोपियों को दो-दो साल की कैद और एक-एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ ही कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
भोपाल गैस कांड के बाद एंडरसन को गिरफ्तार किया गया था लेकिन उसे सिर्फ 25 हज़ार के मुचलके पर ज़मानत मिल गई। इसके बाद वह अमेरिका भाग गया। भोपाल गैस त्रासदी मामले की सुनवाई करने वाली अदालत ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया है।अदालत ने भगोड़ा घोषित कर दिया और तब की राजीव गांधी की केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश की अर्जुन सरकार के रवैये से अब यह कयास लगाए जाने लग गये हैं कि एंडरसन भागा नहीं था उसे सुरक्षित वापस भेजा गया था। यानि 20 हजार से भी ज्यादा लोगों की जानें लेने वाला हत्यारा और लाखों को किसी न किसी रूप में अपाहिज बनाने वाला एंडरसन 'निर्दोष' था। विदेशी चैनल को ठीक यूनियन कार्बाइड के सामने खड़ा होकर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने कहा कि उनका इरादा किसी को प्रोसिक्यूट करने या परेशान करने का नहीं है इसलिए उन्होंने एंडरसन को जमानत दे दी। वहीं, सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक लाल, जो इस मामले की जांच के प्रभारी थे, ने दावा किया कि उन पर विदेश मंत्रालय की ओर से एंडरसन के प्रत्यर्पण का प्रयास नहीं करने का दबाव था। अप्रैल 1994 से जुलाई 1995 के बीच मामले की जांच करने वाले लाल ने कहा, ‘‘सीबीआई की जांच प्रभावित की गई और कई अधिकारी इसे निर्देशित करते थे, जिसके परिणामस्वरूप भोपाल गैस त्रासदी मामले में न्याय में देरी हुई, और इस तरह न्याय नहीं मिल पाया।’’वहीं, सीबीआई के पूर्व उप-प्रमुख बीआर लाल के दावों को खारिज करते हुए विभाग के पूर्व निदेशक के विजयरामा राव ने कहा, ‘‘भारत सरकार और सीबीआई ने एंडरसन को अमेरिका से प्रत्यर्पित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन अमेरिका से इसके लिए मंजूरी नहीं मिली।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उनका (अमेरिका का) दावा था कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री सिर्फ एक सहायक कंपनी थी और इस व्यक्ति (एंडरसन) को सीधे तौर पर इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कंपनी के संचालन में वह सीधे शामिल नहीं थे। हालांकि हम उन्हें नैतिक तौर पर जिम्मेदार मान सकते हैं।’’एंडरसन की फरारी के मामले में पहली बार राजीव गांधी के प्रमुख सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर ने मुंह खोला और कहा कि उन्हें नहीं मालूम लेकिन उनका खयाल है कि अर्जुन ने राजीव से बात किए बिना कुछ नहीं किया होगा।
अलेक्जेंडर के इस बयान के बाद राजीव गांधी के सचिव रहे आरके धवन जैसे भड़क ही गए। उन्होंने अलेक्जेंडर पर नया आरोप ही मढ़ डाला। यह आरोप कहीं न कहीं देश की छिपी राजनीतिक गतिविधियों का खुलासा भी करता है। आरके धवन ने आरोप लगाया कि अलेक्ज़ेंडर को राष्ट्रपति नहीं बनने दिया गया था इसलिए वे नाराज हैं और इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। कह सकते हैं कि भोपाल कांड ने सबको टांग खिंचाई करने का मौका दे दिया और जनता को यह जानने का मौका मिल गया कि कौन कितने पानी में है?
इस पूरे मामले में एक बात और भी कही जा रही है वह यह कि 1984 में भागने से पहले एंडरसन ने तब के राष्ट्रपति जैल सिंह से मुलाक़ात की। लेकिन उस दौरान ज्ञानी ज़ैल सिंह के प्रेस सचिव तरलोचन सिंह ने इससे साफ़ इनकार किया है।जैल सिंह के प्रेस सचिव तरलोचन सिंह ने कहा कि उन्हें एंडरसन और ज़ैल सिंह की मीटिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है। तरलोचन सिंह ने यह भी कहा कि कोई भी विदेशी एक दो दिन की मोहलत के बिना राष्ट्रपति से नहीं मिल सकता था। जब तक विदेश मंत्रालय या संबंधित मंत्रालय की मंजूरी ना हो।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री वसंत साठे ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में यहां तक कह डाला कि 1984 में सरकार में कुछ ‘शरारती’ तत्व शामिल थे, जिन्होंने यूनियन कार्बाइड के सीईओ वॉरेन एंडरसन को देश से भगाने में मदद की थी। साठे ने कहा, ‘‘यह एक गलती थी (एंडरसन को भारत से भागने की अनुमति देना)।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एंडरसन की रिहाई पूरी तरह गलत और अवैध थी। भारत से बाहर जाने में उसकी मदद किसी प्राधिकारी द्वारा की गई थी, लेकिन मैं किसी व्यक्ति विशेष पर आरोप नहीं लगा सकता।’’तब की सरकार में दिग्विजय सिंह मंत्री थे। उनका कहना है कि हो सकता है कि यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन को अमेरिका के दबाव में छोड़ दिया गया हो। कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी तो कांग्रेस पार्टी को ही परोक्ष रूप में दोषी मानते हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती। उन्होंने कि उस वक्त केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकारें थीं और एंडरसन बच निकलने में कामयाब रहा।
सीबीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना भी लाज़मी है। कोर्ट में एंडरसन की पेशी की बात पर सीबीआई हमेशा कहती रही कि उसे एंडरसन के ठौर-ठिकाने के बारे में जानकारी नहीं है। इसके विपरीत ग्रीनपीस नाम की संस्था के पॉलिटिकल एसेट्स एडवाइजर और जनसंपर्क अधिकारी निर्मला करुणन ने बताया, ‘हमने देखा कि हमारे पहुंचने के बाद वॉरेन एंडरसन पीछे के दरवाजे से भाग गया।’ उन्होंने बताया, ‘हमने पूरी घटना के बारे में इसके फौरन बाद अमेरिकी अदालत, सीबीआई और भारत की अदालत को भी बताया।’ भोपाल गैस त्रासदी मामले की सुनवाई करने वाली अदालत ने भले ही यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया हो, लेकिन जानी मानी पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस ने एंडरसन को न केवल आंखों से देखा, बल्कि उसके बारे में सीबीआई और अदालत को सूचित भी किया था।इस घटना में सबसे बड़ा दोषी यूनियन कॉर्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन है। उसने कभी खुद को जिम्मेदार या गुनहगार माना हो ऐसा लगता नहीं। भोपाल हादसे के महज 3 महीने बाद एक टीवी इंटरव्यू में एंडरसन ने साफ तौर पर कहा कि हादसे के लिए कारखाने के कामगार जिम्मेदार हैं वो नहीं। वारेन एंडरसन ने इस इंटरव्यू में कहा, 'सुरक्षा उन लोगों की जिम्मेदारी है जो हमारे कारखानों में काम करते हैं और इस तरह की व्यवस्था में आप उनको जिम्मेदारी से बरी कर किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।'कुछ ऐसे सबूत हैं जिसे कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता। उस दौरान का एक टैलेक्स बताता है कि यूनियन कॉर्बाइड ने अपने भोपाल कारखाने में सुरक्षा की कैसी अनदेखी की। 27 अगस्त 1984 को यानी हादसे से 3 महीने पहले ये टैलेक्स कारखाने के वर्क्स मैनेजर जे मुकुंद ने अमेरिका भेजा था। यूनियन कार्बाइड की सेफ्टी टीम के अफसर सी टायसन से उन्होंने भोपाल प्लांट की पाइपिंग को मजबूत करने के लिए सुझाव मांगे। ये भी बताया कि वो पूरे प्लांट में एस्बैस्टस को फिलर मेटेरियल बनाना चाहते हैं। मुकुंद को 12 सितंबर 1984 को जवाब आया। सी टायससन ने लिखा कि उनके हिसाब से सबसे बढ़िया फिलर मटेरियल ग्रेफॉयल (grafoil) है। अमेरिकी प्लांट में इसका टेस्ट किया गया है। लेकिन भोपाल के प्लांट के लिए ये महंगा हो सकता है। इसी बात से समझ लीजिए की प्लांट में सुरक्षा को लेकर कितनी लापरवाही बरती गई।हादसे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तब साफ कहा कि हादसे की जिम्मेदारी यूनियन कार्बाइड की है। हादसे की जांच कर सीबीआई ने कोर्ट को बताया था कि कारखाने की डिजाइन गड़बड़ थी और उसको चलाने में भी लापरवाही की जा रही थी और ये दोनों यूनियन कार्बाइड की जिम्मेदारी है।
भारत में एंडरसन पर फैसला आया तो गूंज अमेरिका में भी सुनाई दी। यूनियन कार्बाइड कंपनी के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई किए जाने की मांग को अमेरिका ने सिरे से खारिज कर दिया। अमेरिका के उप विदेश मंत्री रॉबर्ट ब्लेक ने कहा, 'भोपाल गैस कांड इतिहास का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा था लेकिन मुझे नहीं लगता कि फैसले के बाद कोई नई जांच शुरू होगी। हमें उम्मीद है कि इस फ़ैसले के बाद पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए ये मामला खत्म होगा।'वैसे केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने तसल्ली देने के लिए कह भर दिया है कि भोपाल गैस त्रासदी के मामले में यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वारेन एंडरसन के खिलाफ मामला बंद नहीं हुआ है। मंत्री ने कहा, ‘सीबीआई ने आरोप-पत्र दाखिल किया है। इसके बाद अदालतों ने आरोप तय किए। वह फरार है और उसे भगोड़ा अपराधी घोषित किया गया है।’ मोइली ने कहा, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि उसके खिलाफ मामला बंद हो गया।’ भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालत के फैसले की समीक्षा, और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पांच सदस्यीय समिति गठित की है। यह समिति 10 दिनों में प्रारंभिक रिपोर्ट देगी और 30 दिन के अंदर अदालत के फैसले को चुनौती देने पर विचार करेगी। ताजा ख़बर यह भी है कि केंद्र सरकार ने एंडरसन की सुरक्षित वापसी का वादा तक अमेरिका से किया था। एंडरसन के पकड़े जाने पर अमेरिकी दूतावास के अधिकारी ने भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से बात की थी और उन्होंने वादा पूरा करने की बात कही थी और यह हुआ भी। फिर क्या राजीव गांधी लोगों के सामने इंटरव्यू में कार्रवाई किए जाने और यूनियन कार्बाइड को दोषी ठहराने का दिखावा कर रहे थे।प्रश्न यह है कि आखिर कब देश में देशभक्त राजनेता आएगा। अब तक के ये नेता निहितस्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। दिन प्रतिदिन हो रहे नए खुलासों से वैश्विक पटल पर विश्व से सबसे बड़े लोकतंत्र के नेतृत्व और उनकी साख पर बट्टा ही लगा रही है।

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