Wednesday, May 14, 2008
सोचो तरक्की किसके लिए और कैसी
दोस्तों मैं आज यह बात कहना चाहता हूं कि आखिर हम तरक्की किसके लिए करना चाहते हैं। देश में इस बात गौरव महसूस करने की बात अरसे से कही जा रही है कि हमारे देश के वैज्ञानिक विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं। हमारे इंजीनियर विकसित देशों की विकसित मानसिकता वाले लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। लेकिन क्या यह कहीं हकीकत नहीं कि हम आज भी पीछेलने की मानसिकता से उबर नहीं पा रहे हैं। हम आज भी वह बना रहे हैं जो उनकी जरूरत है हमारी नहीं। ये तरक्की हमारी नहीं उनकी है। यहां इस बात को मैं और साफ कर दूं कि हमारे साफ्टवेयर इंजीनियर देश में विदेशों की जरूरत वाले प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं लेकिन क्या हम अपने लिए ऐसे प्रोग्राम तैयार नहीं कर सकते जो हमारे देश के लिए उपयोगी साबित हों। हम अंग्रेजी की बात करते हैं उसका अनुपालन करते हैं और तरक्की का मतलब सिर्फ मोटी कमाई और बड़ी विदेशी कंपनी में नौकरी को समझते हैं। जरूरी है कि कहीं इस सोच को बदला जाए और चीन से इस बात का सबक लिया जाए जो हमारी तरक्की और विकास को ठेंगा दिखाते हुए आज विश्व शक्ति को आंख दिखाने की ताकत रखता है। चीन में कहीं भी कभी विदेशी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया और उसके नीति निर्धारकों को आज भी विदेशी मंच पर अपनी बात रखने के लिए एक अनुवादक की आवश्यकता पड़ती है। चीनी अपनी भाषा में गर्व के साथ अपनी बात रखते हैं। इतना ही नहीं अपने यहां के उत्पादों में जो आज पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुके हैं उनमें भी चीनी भाषा में जानकारी लिख कर देते हैं। हां, यह जरूर है कि अपने को दूसरों के करीब लाने के लिए उनकी भाषा का इस्तेमाल करते हैं मगर कहीं इसी प्रयास में हम अपनों और अपनी संस्कृति और भाषा से दूर हो चले हैं। तरक्की के मायने बदल लिए हैं।
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