Tuesday, February 24, 2009
अपने युवाओं को क्या देना चाहते हैं हम
मेंगलूर की घटना ने पूरे देश में तहलका मचा रखा है। कम से कम मीडिया तो इस खबर को ऐसे ही दिखा रहा है मानो जैसे 26/11 की घटना हो। हां, इसका लाइव फूटेज थोड़ा कम मिला तो ज्यादा चिल्ल-पों करके हिसाब पूरा कर लिया गया। इस बात से तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता है कि आखिर महिला या लड़कियों पर हाथ उठाना किसी भी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता बल्कि उसपर कलंक जरूर कहा जाएगा।इस पर भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम का पर बनाई गई कथित सेना के द्वारा इस तरह का अमर्यादित काम तो बिल्कुल भी शोभा नहीं देता। कम से कम भगवान श्रीराम के नाम का प्रयोग करने से पहले प्रमोद मुतालिक जैसे लोगों को कुछ नहीं तो कम से कम इतना तो ख्याल रखना ही चाहिए था कि भगवान राम ने मर्यादा कायम रखने के लिए अनेक कष्ट वर्षों तक सहे।कुछ ऐसे तथ्य या वास्तविकताएं जिनकी किसी भी शिक्षित, जागरूक, सभ्य, गतिशील, स्वस्थ आदि समाज में कोई जगह नहीं हो सकती, इनमें से कुछ ऐसे हैं- जैसे, भारत में युवाओं में तेजी बढ़ती जा रही नशाखोरी की प्रवृत्ति। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास ने हाल में मीडिया जगत के सामने इस बात का खुलासा किया है कि यह दर 16 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यहीं यह भी प्रश्न उठता है कि क्या हम अपनी युवा पीढ़ी को नशाखोर बनाना चाहते हैं... विचार करें...!दूसरा एक और बड़ा सत्य, हाल ही एक पश्चिमी देश में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 18 की उम्र तक पहुंचने से पहले एक बाला कम से कम 11 पुरुषों के साथ यौन संबंध बना चुकी होती है। इतना ही नहीं इसी देश का बालक वयस्क होने की उम्र तक मात्र छह लड़िकयों से संबंध बनाता है। यहीं यह भी प्रश्न उठता है कि हम अपनी युवा पीढ़ी के किस प्रकार के भविष्य की कल्पना करते हैं।तीसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आजकल पिता अपनी बेटी को भी नहीं बख्श रहा है। यह भारत में अभी अपवादस्वरूप ही है। और, इक्का-दुक्का ही ऐसी घटनाएं हैं लेकिन अभी तक ऐसा एक भी उदाहरण नहीं आया है पिता ने अपनी पुत्री से ही बच्चे को जन्म दिया हो। मगर यह तथ्य जरूर चौंकाने वाला है कि एक लंदन निवासी ने अपनी पुत्री को अपने ही घर में 24 सालों तक कैद रखा और उससे तीन बच्चे भी पैदा कर दिए। इसी के साथ एक उदाहरण एक अन्य अतिविकसित देश से भी यह है कि यहां के अतिशिक्षित व्यक्ति ने अपनी तीन बेटियों से 11 बच्चे पैदा किए हैं। सबसे बड़ी बेटी करीब 30 साल की है और उसकी सबसे छोटी बेटी 16 साल की है जिससे उसके दो बच्चे हैं।इसके आगे... इस तरह के अनगिनत उदाहरण हैं।मकसद यह दिखाना या साबित करना नहीं है कि हम अच्छे हैं या वे बुरे हैं। यहां इस बात की बहस होनी चाहिए कि हम हमारे देश में हमारे लिए, हमारे युवाओं के लिए और हमारे भविष्य के लिए किस संस्कृति का चयन करते हैं।यह शास्वत सत्य है कि पुरुष और महिला का एक दूसरे के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। और शायद, इस पर ही अंकुश रखने की दृष्टि से भारत में संस्कृति, सभ्यता और धर्म का सहारा लिया जाता है। मेरे खयाल से किसी मजबूत, जागरूक और शिक्षित समाज में इस तरह के किसी सहारे की आवश्यकता नहीं होती।यहीं हम इस बात का ध्यान रखें कि हमारी कुछ समस्या अतिविकसित, अतिशिक्षित और अतिविशिष्ट सेवाओं से सुसज्जित देशों से कई मायनों में अतिभिन्न है। जैसे जनसंख्या विस्फोट, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य सेवाएं, टूटी-फूटी सड़कें, भूख, बेरोजगारी, महिला उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या आदि-आदि अनगिनत समस्याओं के साथ देश में प्रति 10 किलोमीटर पर बदलती भाषा, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, प्रतिमान और जाने क्या क्या...राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास ने पब कल्चर के खिलाफ कानून बनाने की बात कह दी है।हम समझते हैं कि क्या सही है, क्या गलत! हम कानून बनाते हैं और यही कानून देश की दिशा और भविष्य तय करते हैं। कानून कौन बनाता है, उसकी सोच क्या है और भविष्य में क्या पाने की चाहत से कानून बनाया जाता है। यह कुछ ऐसे जरूरी प्रश्न हैं जिनका जवाब सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।युवाओं की आजादी पर रोक न कभी लग सकी है न लग पाएगी। युवाओं के जोश, जुनून और जिजीविषा के आगे सभी चुनौतियां फीकी पड़ी है। कानून बनाने से पूर्व जरूरी है कि युवाओं को यह समझाया जाए क्या गलत है और 'वह' क्यों गलत है। जब मनुष्य बात के इस 'क्यों' से अवगत हो जाता है तो आश्वस्त होकर बात को मन-मस्तिष्क से अंगीकार करता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment