Tuesday, March 31, 2009

पाक पर लगाया उसका अपना आतंक का फार्मूला

मार्च 2009 माह के अंतिम सप्ताह ने पाकिस्तान में इतिहास रच दिया। पाकिस्तान के लाहौर जिले में स्थित मानवां पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर घात लगाकर बैठे आतंकियों ने हमला कर दिया। अत्याधुनिक हथियारों से लैस इन आतंकियों ने 27 जवानों को मौत के घाट उतार दिया और कम से कम अन्य 90 पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया। इतना ही नहीं इस आतंकी हमले को नाकाम करने के लिए मात्र आठ घंटों तक चले ऑपरेशन में तीन आतंकियों को मार गिराया गया और छह को ज़िंदा पकड़ लिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम में एक बात तो अचरज करने वाली रही कि जहां आतंकियों ने 1500-2000 तक की संख्या वाले इस ट्रेनिंग कैम्प पर हमला कर सैकड़ों पुलिस कर्मियों को बंदी बना लिया था वहीं सुरक्षाबलों ने कितना जल्दी आसानी से उन पर काबू पा लिया।कुछ दिनों पूर्व ही पाकिस्तान के लाहौर में ही श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर आतंकियों ने हमला कर पाकिस्तान को एक शर्मनाक स्थिति में खड़ा कर दिया था। इस आतंकी घटना में जब पाकिस्तान की मीडिया ने कई अन्य खुलासे किए तो पाक की सुरक्षा का दंभ भरने वाली सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए और सर शर्म से झुक गया था। लेकिन क्या पीटीएस पर हुए हमले पर इसी का असर दिखा कि सुरक्षा तंत्र इतना मुस्तैद हो गया कि आसानी से आतंकियों पर काबू पा लिया गया।भारत में एक और फिर पाकिस्तान में हुए दो आतंकी हमलों पर गौर करें तो पाएंगे कि आतंकियों की भी प्रजाति बन गई है।
कुछ व्यंग्यात्मक लग रहा होगा किंतु सत्य है। नजरिया कुछ यूं है कि भारत में मात्र दस आतंकियों ने कहर ढाया। सब के सब मरने मारने को आतुर थे। सभी की ट्रेनिंग किसी सेना के अधिकारी की ट्रेनिंग से कम नहीं थी। अच्छी रेकिंग, समयबद्ध सधी रणनीति और पूरे एक सैनिकवाला ज़ज्बा लिए भारत पर हमला करने आए थे आतंकी। मात्र एक कसाब (आतंकियों की नज़र में घायल सैनिक) को छोड़ दें तो अन्य अपने काम को पूरी तरह अंजाम तक पहुंचाकर अंजाम तक पहुंच गए।
दूसरा हमला पाकिस्तान के चारों तरफ से दबाव में घिरे होने के बीच कराची में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुआ। मात्र छह पुलिस कर्मी शहीद हुए और पूरी तैयारी के साथ आए आतंकी बिना ज्यादा कुछ करे वापस लौट गए। उनका भागना जिस अंदाज में पाकिस्तान की मीडिया ने दुनिया के सामने रखा वह कई सवाल तो खड़े कर गया।
कितना आश्चर्य हुआ जब पूरी साज-सज्जा के साथ आए आतंकी अपना सामान बैग, हथियार, हथगोले, इत्यादि छोड़ कर भाग खड़े हुए। यह भी तब जब मौके पर उनका सामना करने को कोई पुलिस कर्मी या तो जीवित नहीं था या फिर भाग गया था। इस पूरी घटना में एक भी आतंकी मारा नहीं गया। कहा गया कि यह तैयारी भारतीय क्रिकेटरों के स्वागत के लिए थी। हो सकता है कि अपने इच्छानुरूप मेहमान न पाकर आतंकी चले गए हों। यहां पर भी गौर करने की बात थी कि आतंकियों के सामने विरोध करने को कोई नहीं था फिर भी आराम से भाग गए। बिना कोई खास जनहानि या फिर मालहानि किए। यहां पर पाकिस्तान के पंजाब के गवर्नर और लाहौर के कमिश्नर ने सीधे तौर पर भारत को हमले के लिए दोषी करार दिया था। बाद में यह आवाज दब गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
तीसरा हमला लाहौर में पीटीएस पर यहां पर भी एक नए किस्म के आतंकी आए। पाकिस्तान दावा कर रहा है कि ये तालिबानी हैं। तालिबानी यानि अफगानिस्तान से आए हैं। यह भी इसलिए क्योंकि पकड़े गए आतंकी पश्तो बोल रहे हैं। इस आतंकी घटना में भी जो आतंकी आए उन्होंने वह सब नहीं किया जो भारत में हुआ था।
क्या यह संभव है कि ग्रेनेड और एक-47 जैसी राइफलों से लैस आतंकी जिनकी संख्या तकरीबन एक दर्जन हो और अंजाम मुंबई जितना भी भयावह न हो। चलो ठीक हुआ आखिर इंसानियत ज्दाया शर्मसार होने से बच गई।भारत ने अपनी विवेचना में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को दोषी ठहराया और इसके सबूत भी विश्व समुदाय के सामने रखे हैं। किंतु लाहौर में श्रीलंकाई टीम पर हुए हमले पर पाकिस्तान अभी तक कुछ नहीं बोल पाया है परंतु उसका मुंबई फार्मूला चुराकार तालिबानी आतंकियों ने पीटीएस पर हमला कर दिया। तालिबानियों का यह कदम सीधे पाकिस्तान की फौज को चुनौती है। जनता में सुरक्षा का एहसास जागृत करने का काम पुलिस और सेना का होता है। वहीं तालिबानियों ने पाकिस्तान सरकार को चुनौती दी है कि आखिर वो अमेरिका के साथ मिलकर उनपर हमला करने के अंजाम को भुगतने के लिए तैयार रहें।
आज पाकिस्तान अपने ही जाल में फंसता दिखाई दे रहा है। एक आतंकी वह बनाता है जिसे वह कभी कारगिल में तो कभी कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल करता है तो कभी ऐसे आतंकी तैयार करता है जो मुंबई, जयपुर, अहमदाबाद जैसी आतंकी घटना को अंजाम दे रहे हैं। भारत पर हमला करने आए आतंकी निश्चित रूप ज्यादा कुशल ढंग से प्रशिक्षित थे। वहीं लाहौर में श्रीलंकाई टीम पर हुए हमले को अंजाम देने के लिए आए आतंकी भी उसी दर्जे के प्रशिक्षण प्राप्त थे। किंतु यहां फर्क सिर्फ मकसद का दिखाई देता है। लेकिन पीटीएस पर हुए हमले के कुछ और ही मायने हैं। यह सीधे तौर पर तालिबानियों का इशारा है कि हम जरूरत पड़ने पर भारत की सीमा पर भी अपनी कार्रवाई कर सकते हैं। यह तथ्य अपने आप में शास्वत हो जाता है जब हम इस तालिबान के उस ऐलान से जोड़ कर देखते हैं जब उसने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव में कहा था कि भारत-पाक युद्ध की स्थिति में उनके तालिबानी पाकिस्तान की सेना के साथ खड़े दिखाई देंगे।यहां एक आवश्यकता पड़ती है कि हम भारत के नजरिए केवल यही न देखें कि पाकिस्तान में अमानवीय कृत्य कर आतंकियों ने दर्जनों पुलिस वालों को मौत के घाट उतार दिया है। सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि इस तरह के छद्म युद्ध का आरंभ भारतीय सरज़मीं से हुआ। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने यह साबित कर दिखाया है कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हुए हमले में पाकिस्तान से संबंधित आतंकी संगठन शामिल थे। जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए कि इस हमले में संभव है कि पाकिस्तान की आईएसआई भी सीधे तौर पर सम्मिलित थी। एक आश्चर्य यह भी कि जो फार्मूला पाकिस्तान में भारत के खिलाफ इस हमले का फार्मूला स्पष्ट रूप से भारत की मजबूत (पाकिस्तान के संदर्भ में) अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न करना था। असर दिखा और दूरगामी परिणाम जारी है।
अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन ने भी भारत में हॉकी मैच कराए जाने से पूर्व एक सुरक्षा दल भारत दौरे पर भेजने की योजना बनाई है। संभव है कि भारत को इस शर्मनाक स्थिति से 2010 (यानि अगले साल) में होने वाले राष्ट्रमंडल खेले के वक्त पर भी दो-चार होना पड़े। मात्र एक आईपीएल के भारत से बाहर चले जाने से ही अनुमान लगाया गया कि भारत को कम से कम 4000 हजार करोड़ रुपये की हानि होगी। इसी प्रकार राष्ट्रमंडल खेलों पर भी संकट मंडरा रहा है। ज्यादा तवज्जो यदि खेल पर केंद्रित कर दिया जाए तो शायद हम मुद्दे से इतर चर्चा आरंभ कर दें। मात्र खेल ही नहीं देश की अन्य आर्थिक गतिविधियों पर भी इस प्रकार के आतंकी हमलों का असर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय पटल पर देश में सुरक्षा तंत्र और कानून व्यवस्था की जो छवि बनती है वह देश के विकास को दशकों पीछे ढकेल देती है।

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