Wednesday, September 22, 2010

फौजियों की गुंडागर्दी के खिलाफ बुलंद करें आवाज़

हाल ही में एक परिचित ने अपनी तकलीफ सुनाई... आप भी जानें..
इलाहाबाद से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस में वह जनरल डिब्बे में दिल्ली आने के लिए घुसा। घुसते ही उसने पाया कि एक फौजी आराम से एक सीट पर कब्जा किए सो रहा है। इतना ही नहीं, उसके सामने लोग खड़े हैं और अपनी धौंस से वह सभी को डरा कर सीट पर कब्जा किए हुए था। ठीक उसी डिब्बे के बगल वाले जनरल कोच में भी फौजियों ने जबरन कब्जा कर रखा था। उस डिब्बे में किसी भी आम आदमी को घुसने नहीं दिया जा रहा है। उस कोच में भी सभी आराम से सो रहे थे। जहां तक इस कोच की बात थी,, जब मित्र ने फौजी का विरोध किया था कि कुछ और फौजी डिब्बे में फौजी के नाम पर घुसे और सामने सीटों पर बैठे लोगों को उठवा दिया। मित्र ने इसका भी विरोध कर कहा कि यह फौजी डिब्बा नहीं है। पीछे वाले डिब्बे में फौजी पहले से ही घुसे हैं, उसमें चले जाओ, मित्र ने यह कहकर जैसे अपराध कर दिया। पांचों फौजी उस पर टूट पड़े। मित्र तो डिब्बे से उतर आया और उसने मुझे फोन लगाया। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करूं। हां इतना जरूर हैं कि मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि आखिर जब शांतिप्रिय क्षेत्र में सेना के सुशिक्षित, सुप्रशिक्षित और सभ्य जवान ऐसा बर्ताव करते हैं तो AFSPA जैसे कानून की आड़ में कश्मीर में क्या हालात होंगे। इसी स्थिति को मैं कश्मीर में एक व्यथित के बयान (जो एनडीटीवी की नीता शर्मा की हाल की कश्मीर पर की गई रिपोर्ट से बता रहा हूं) में कहा, कि बच्चे पढ़ने जाते हैं तो ये फौजी आई कार्ड मांगते हैं और उनका काफी समय हर जगह इसी काम में चला जाता है। यह कहते हुए वह कश्मीरी बोल पड़ा कि आखिर हमारे बच्चे क्यों कश्मीर में आई कार्ड दिखाएं, आई कार्ड तो इन बिहारियों को दिखाना चाहिए। उसकी जुबान में नफरत साफ दिखाई दे रही थी। फौजियों की बदसलूकी नई नहीं है। मैं, उमर अब्दुल्ला के शब्दों में कहूं तो इस(AFSPA) 'ड्रैकोनियन लॉ' का विरोध करता हूं। आप किस तरफ हैं...

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