Tuesday, September 28, 2010

कलमाड़ी ने कल्याण की तरह ही दिया 'धोखा'

आखिरकार भारतीय ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष और राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने मीडिया के सामने माफी मांग ली। कलमाड़ी की माफी ने सीधे उस दौर की याद दिला दी जब अयोध्या का विवादित ढांचा कतिपय लोगों द्वारा गिरा दिया गया था और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने देश से और सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगी थी। कल्याण ने भी विवादित ढांचा न बचा पाने की 'नैतिक जिम्मेदारी' ली थी।

खास बात यह है कि दोनों ने ही पहले तो बड़ी 'बेशर्मी' से देश और देशवासियों के साथ-साथ केंद्र सरकार को और यहां तक की कोर्ट से भी कहा कि वह अपने वादे पर खरे उतरेंगे। लेकिन दोनों ही फेल हो गए। कल्याण ने कहा कि वह रामभक्तों पर गोली चलाने का हुक्म नहीं दे सकते थे और बेकाबू भीड़ ने अपना काम कर दिया। इस बात के लिए कल्याण सिंह को सजा भी मिली। केंद्र में नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया। केंद्र के शब्दों में वह बर्खास्तगी थी और याद किया जाए तो कल्याण सिंह केंद्र के बर्खास्तगी के कदम से पूर्व ही अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप चुके थे। कल्याण ने साफ कहा कि उन्हें विवादित ढांचे के गिरने का कोई अफसोस नहीं है और वह इस तरह के कार्य के लिए तमाम सरकारें कुर्बान कर सकते हैं। खैर, अदालत में दिए हलफनामे और केंद्र को विवादित ढांचे की सुरक्षा संबंधी दिए आश्वासन में विफल रहने के कारण कल्याण को अपनी सरकार से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा, अदालत से कल्याण सिंह को सजा भी मिली और उन्होंने सजा के रूप में एक दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा।

वर्तमान में, कलमाड़ी ने देश से माफी मांगी है और राष्ट्रमंडल खेलों में हुई देरी की नैतिक जिम्मेदारी भी ले ली है। कल्याण सिंह के पास तो कोई था नहीं, जिसे वह ढांचे के गिराए जाने के लिए दोषी ठहराते और अपनी छिछालेदर और सरकार बचा लेते। लेकिन, हमारे 'बहादुर' कलमाड़ी ने खेल के कुछ दिन पूर्व यह कहकर देशवासियों पर अहसान कर दिया कि देरी के लिए दिल्ली सरकार दोषी है।

कलमाड़ी ने कह डाला कि देर से स्टेडियम और कार्यस्थल दिए गए जिसकी वजह से देरी हुई। सवाल देरी का ही नहीं है, मात्र देरी का जिक्र करके तमाम कलमाड़ी का अन्य आक्षेपों से बेदाग निकलने का अच्छा प्रयास है।

कलमाड़ी के सामने ऐसे तमाम मौके आए जब मीडिया ने साफ तौर पर उनसे देरी होने की बात कही और प्रश्न भी उठाया कि जिस गति से काम हो रहा है उससे तो खेल का समय खत्म होने के बाद भी महीनों तक काम चलता रहेगा। बावजूद इसके, अब शर्मसार कलमाड़ी, तब बड़ी नैतिकता और जिम्मेदारी के साथ जोरदार वचनों से कहते चले आए कि तैयारी समय से हो रही है और इसमें कोई देरी नहीं होगी।

कलमाड़ी की कॉमनवेल्थ समिति वालों से कैसी बनती है, यह विचारणीय नहीं है किंतु कुछ माह पूर्व कॉमनवेल्थ समिति के सदस्य भारत में तैयारियों का जायजा लेने आते रहे हैं और सभी ने एक तरफ से भारत में खेलों की तैयारी पर संतोष व्यक्त किया। लेकिन जब फांस उनके गले में अटकी तो इन्हीं अधिकारियों ने साफतौर पर कह दिया कि उनका तैयारियों से कोई लेना देना नहीं हैं। इन विदेशी 'मेहमानों' ने देरी होने और यहां तक की खेल रद्द होने की संभावित स्थिति के लिए सीधे भारतीय कॉमनवेल्थ ऑर्गनाइजिंग समिति और भारत को जिम्मेदार बताया।

पांच माह पूर्व से ही मीडिया राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी को लेकर अत्यधिक सक्रिय हो गया था। तमाम तरह के घोटालों को उजागर किया। ऐसे घोटाले जो भारत जैसा विकासशील देश सहन और वहन नहीं कर सकता था। खबरें यहां तक आईं कि पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है और कोई लोगों की गाढ़ी कमाई का हिसाब रखने वाला है। जहां एक रुपये देने चाहिए थे वहां 10-10 रुपये बांटे गए। मीडिया की सक्रियता की वजह कुछ घोटाले तो उजागर हो गए और तमाम ऐसे होंगे जिनका का पता तक नहीं चला। खैर, समय बताएगा कि किसने क्या किया और कौन बच जाएगा। इन तमाम खबरों के बीच सरकार की ओर से कभी भी नैतिकता की बात नहीं कही गई। न ही केंद्र की सरकार ने, न ही दिल्ली की सरकार ने और न ही नैतिकता के शिखर पर बैठे कलमाड़ी साहब ने।

पूर्व के घटनाक्रमों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि देश में नैतिक जिम्मेदारी लेने की बात तमाम राजनेताओं ने की है। कई ऐसे मौके आए हैं जब कुछ नेताओं ने इस्तीफे भी दिए हैं। लेकिन अब नैतिक जिम्मेदारी बात कहना बेमानी सा लगता है। यह कहना भी ऐसा प्रतीत होता है जैसे देश और जनता को धोखा दिया जा रहा है। एक समय कल्याण ने दिया था अब कलमाड़ी भी कम नहीं कहे जाएंगे।

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