Sunday, October 24, 2010

कॉमनवेल्थ खेलों के घोटाले पर राजनीति ध्यान बांटने की साजिश

जिस घोटाले की जांच का पूरा देश इंतजार कर रहा था देर-सबेर प्रधानमंत्री ने स्वीकारा। चलो कॉमनवेल्थ खेल खत्म होने का इंतजार किया। ठीक किया, किंतु यह जांच सिर्फ यदि राजनीतिक लाभ लेने के लिए की जा रही है तो देश के तमाम आयकर दाताओं के पैसों का फिर नाजायज खर्च होना तय दिखाई जान पड़ रहा है।

खेल खत्म होने के साथ ही जिस प्रकार से खेलों की तैयारी में हुए भ्रष्टाचार की जांच के नाम पर राजनीति शुरू हुई है उससे तो यह स्पष्ट हो रहा है कि यह सब कवायद देश की तमाम नासमझ जनता को मूर्ख बनाकर भ्रमित करने की योजना है। जिस हिसाब से खेल आयोजन समिति और उससे जुड़े अधिकारी अपने पदों पर बरकरार रहकर जांच में सहयोग की बात कह रहे हैं वह यह साफ साबित कर रहा है कि जांच की कोई दिशा नहीं है और न ही जांच का कोई ठोस परिणाम निकलने वाला है।कॉमनवेल्थ खेलों पर जांच का सिलसिला शुरू हो चुका है। साथ ही आरंभ हो चुकी चिरपरिचित भारतीय राजनीति। चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत फिर चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। महीनों पहले कॉमवेल्थ आयोजन को लेकर घोटालों के विरोध में मीडिया की सक्रियता से रिपोर्टों को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया। मीडिया जितना सक्रिय था उतना ही निष्क्रिय भारतीय राजनीतिज्ञ और प्रशासन। आज तक किसी एक के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। हुआ वही, जो अब तक होता आया है। आरोप-प्रत्यारोप।सोमवार को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पुणे में बयान दिया था कि वह मंगलवार को दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़े घोटालों पर पर्दाफाश करेंगे। इस बयान का नतीजा भाजपा को अपने ही नेता और ठेकेदार सुधांशु मित्तल के घर आयकर विभाग के छापा से भुगतना पड़ा। छापे की कार्रवाई करीब 25 लोगों के घर की गई किंतु मीडिया में नाम सिर्फ भाजपा नेता का ही उजागर हुआ। भाजपा नेता घोटाले में संलिप्त हैं या नहीं कोई नहीं कह सकता, यह जांच का विषय है। किंतु यह आभास होता है कि यह पूरी कार्रवाई सिर्फ गडकरी की जुबान पर ताला लगाने की एक कोशिश मात्र दिख रही थी।

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