Saturday, May 9, 2015

माओवादी और नक्सलियों को समझना होगा हथियार का भय ज्यादा दिन नहीं टिकता

माओवादियों या कहें नक्सलियों ने एक किसान की हत्या कर दी, यह हत्या इसलिए कर दी क्योंकि वह किसान इलाके में बन रहे पुल में लगे लोगों और कंपनी के लिए मुंशी का काम करता था। उसकी हत्या घोषित सजा के तहत की गई। कहा जा रहा है कि माओवादियों ने अपनी अदालत लगाई जिसमें उसके इस काम के लिए मौत की सजा मुकर्रर की गई। देश की कानून क्या किसी को भी इस तरह मौत की सजा देता, नहीं... लेकिन माओवादियों की सोच और मानसिकता का इससे साफ पता चलता है कि अपना खौफ लोगों में बनाए रखने के लिए वह किस हद तक नीचे गिर सकते हैं।

ये कैसे जनता के हितैषी माओवादी/नक्सली
माओवादी अपने को जनता का हितैषी बताते हैं और जनहित के लिए लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं... ये कैसा जनहित... पुल बनने से किसका फायदा होगा...?  इससे पहले भी तमाम मौकों पर माओवादियों ने ग्रामीणों की हत्या की है।

नाकाम साबित हुई भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बल
देश की सेना 12 लाख सैनिकों से लबालब है और करीब 10 लाख अर्द्धसैनिक बल भी हैं जो अधिकतर इन माओवादियों से  लोहा लेने में लगी रहती है। आंकड़ों की बात होती है तो यह दुनिया में सबसे ऊपर की कुछ चुनिंदा सेनाओं और अर्द्धसैनिक बलों में आती है, लेकिन दशकों से चंद मुट्ठीभर माओवादी इनके लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं। आए दिन अपने हमलों से जवानों की हत्या करते रहते हैं। देश में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के उनके दुस्साहसी कदम... न जाने क्यों सरकारों की आंखें क्यों नहीं खोलती... वर्दीधारियों को जगाने के लिए नाकाफी कैसे साबित हो जाते हैं। ये सभी दावा करते रहे हैं कि भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बल दुनिया की सबसे ताकतवर सेना से लोहा लेने का माद्दा रखती है, तो आखिर ऐसे मौकों पर क्या हो जाता है... आखिर क्यों नहीं देश इन माओवादी या नक्सलवाद की समस्या से निजात पाता।

कहां गई तरक्की और विकास की उपकरण
वैसे तो देश के वैज्ञानिक गाहे बगाहे यह दावा करते हैं भारत के पास दुनिया की उच्चतम तकनीक है। वह चाहे तो आसमान से जमीन पर पड़ी सूई देखी जा सकती है। लेकिन माओवादी नहीं देखे जा सकते हैं। लड़ाई की कौन से परंपरा का निर्वहन करते हुए हजारों सैन्य कर्मियों को शहीद किया जा रहा है, हजारों किसानों की सरेआम हत्या से भय का माहौल बनने दिया जा रहा है।

माओवादियों के रूप में इन हत्यारों को देश के कानून के तहत सजा देना बेहद जरूरी हो गया है, लेकिन हकीकत यह भी है कि यह भी उतना जरूरी है कि जिन कारणों से हजारों युवक हथियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं उन कारणों को भी समाप्त किया जाए।

माओवादी के कारण
तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण गिना देंगे, लेकिन मैं मानता हूं कि मेरी रोटी न छिने और मेरी रोटी की सुरक्षा यदि मैं मेहनत और ईमानदारी से करता हूं तो उसे को बलपूर्वक न छीने, सिर्फ यह सुरक्षा कानून के दायरे में मिले तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब, पैसे, रसूख और बल के दम कमजोर लोगों से यह छीना गया तो वह मजबूर हो प्रतिशोध के लिए... क्योंकि यह एक इंसान का हक नहीं छीना गया, उसके पूरे परिवार, बच्चे बीवी और उनके भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया था।

संपत्ति और भूमि का असमान वितरण
एक सवाल और जो कहीं से भी कमतर नहीं आंका जा सकता है, जिसके वजह से इस समस्या ने अपने पैस पसारे वह रहा है देश में संपत्ति भूमि का असमान वितरण... आज भी आजाद भारत में चंद लोग ही संपत्ति के दम पर हर संपदा का संभोग कर रहे हैं।

आजादी के कुछ सालों में हुई भूल
देश में भूमि आवंटन को लेकर आजादी के साथ मुहिम चलानी जानी चाहिए थी वह नहीं की गई... अब यह संभव नहीं है... हां इस देश की आरंभिक सरकारों ने अंग्रेजों और राजाओं और जमींदारों के साथ जो समझौते किए वह किसी प्रकार से इस समस्या की उत्पत्ति के कारणों कम नहीं है, इसके लिए जो होना चाहिए था, वह नहीं किया गया। ऐसा सिस्टम बनाया गया कि अंग्रेज चले, न अंग्रेजी गई और न ही अंग्रेजीयत... ग्रामीणों को  वैसे ही दासता का दंश आजादी के दशकों बाद तक सालता चला आ रहा है।

हथियारों से कुछ हासिल नहीं होगा
माओवादियों को समझना होगा कि अब यह संभव नहीं कि वे हथियार के दम पर कुछ हासिल कर पाएंगे... उन्हें मुख्यधारा में जुड़ना होगा... और लोकतंत्र के हिसाब से लोगों के बीच अपनी बात रखनी होगी और समझाना होगा, कि यह क्यों जरूरी है... उन्हें यह भी साफ करना होगा कि उनके पास इस समस्या के हल की योजना क्या है, वे कैसे देश की जनता को नया और बेहतर प्रशासनिक तंत्र दे सकते हैं ताकि देश आगे बढ़े और समाज परिपक्व बने...

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