Tuesday, December 8, 2015

क्या विधायक के पेट और आम आदमी के पेट में भी अंतर होता है...

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने विधायकों के लिए 2.35 लाख रुपये के पैकेज की घोषणा कर दी है। इसी के साथ मेरी नजर में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार पर आधिकारिक रूप भ्रष्टाचार को पोसने का आरोप लगता है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे तर्कसंगत और न्यायसंगत बताया। उनकी नजर में अगर पार्टी विधायकों को भ्रष्टाचार के दाग लगने से बचाना है तो उन्हें सरकार की ओर से इतना पैसा मुहैया करा दिया जाए कि उनके भ्रष्ट होने की गुंजाइश कुछ कम हो जाए।

एक कार्यक्रम में सीएम केजरीवाल ने एक बार फिर बड़े ही तल्ख अंदाज में अपनी पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री आसिम अहमद को बर्खास्त करने की बात कही और बाकी सभी लोगों को ऐसे भ्रष्टाचार से दूर रहने की ताकीद कर दी। उन्होंने जब अपने मंत्री को बर्खास्त किया था तब भी सवाल उठा था कि जब उनके पास 'ऑडियो' था तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल क्यों नहीं भिजवाया।

बतौर नए सीएम केजरीवाल जी जनता से लगातार यह अपील करते आ रहे थे कि वह सरकारी कर्मचारियों का भ्रष्टाचार उजागर करें और वे भ्रष्ट लोगों को जेल भेजेंगे। कुछ लोगों की विवादित संख्या भी उन्होंने एक विज्ञापन के जरिए लोगों को बताई जिन्हें उनकी सरकार ने जेल में डालवाया। (यहां यह स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि वह खुद ही न्यायपालिका की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेने की बात कह रहे थे)

खैर जब बात अपने मंत्रिमंडल सहयोगी और पार्टी विधायक की आई तो उन्हें शायद अपनी कही बातें याद नहीं रहीं। उन्होंने आसान रास्ता निकाला, जांच कराने का हवाला दिया, केंद्र सरकार से सीबीआई जांच कराने की अपील भी कर डाली। मैं तो उम्मीद कर रहा था कि अब सीएम केजरीवाल मीडिया के लाव-लश्कर के साथ तिहाड़ तक अपने पूर्व सहयोगी को छोड़कर आएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं...

फिलहाल मामला कहां पहुंचा इस बारे में उसके बाद से न तो दिल्ली सरकार ने कभी कोई बयान दिया न ही मीडिया ने इस बारे में कोई खबर निकालने का प्रयास ही किया।

खान दिल्ली सरकार के तीसरे मंत्री थे जो विवादों में आने के बाद मंत्री पद से हटा दिए गए। हो सकता है कि अपने मंत्रियों के परेशान रवैये से दुखी होकर दिल्ली सरकार ने अचानक यह फैसला कर लिया कि दिल्ली के विधायकों का वेतन ही बढ़ा दिया जाए ताकि भ्रष्टाचार की भूख यानि माल समेटने की चाहत कुछ कम हो। वैसे लोगों ने अरविंद केजरीवाल के पुराने ट्वीट को फिर सार्वजनिक कर उन्हें याद दिलाया था जब संसद में ऐसा ही बिल पास हुआ था तब उन्होंने क्या ट्वीट किया था।

राजनीति में आने के पहले केजरीवाल जी अपने कार्यकर्ताओं को स्वयंसेवक, जुझारू और सबकुछ न्यौछावर करने वाला बता रहे थे। वे सभी देशभक्त और समाज सुधारक थे। यह सब लिखते हुए भी मुझे राम लीला मैदान का दृश्य, तिहाड़ जेल के बाहर का दृश्य स्मरण होने लगा है। आज उन्हीं लोगों में से 67 आम लोग विधायक हो गए हैं।

वो दौर था जब केजरीवाल यह बोलते नहीं थकते थे, इन्हें देखो ये फला जगह से आकर दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी कर रहे हैं, आंदोलन में देश के लिए कूदे, क्या चाहिए इन्हें, कुछ नहीं। मकसद सिर्फ राष्ट्रसेवा, भ्रष्टाचार मुक्त भारत है मांग, फला को देखिए स्टूडेंट हैं, ये इंजीनियर हैं, विदेश से नौकरी छोड़कर आए हैं, मल्टीनेशनल कंपनी से फला आए हैं... सभी देश को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहते हैं... आज सारी बातें दिखाई दे रही हैं। सारे आम आदमी अब खासम खास हो गए हैं।

एक कार्यक्रम में केजरीवाल तमाम कंपनियों के बड़े बड़े लोगों के बीच बैठे कहने लगे कि विधायकों का वेतन बढ़ाना बेहद जरूरी था ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे और अब किसी की शिकायत आई तो वो बर्दाश्त नहीं करेंगे। यानी हो सकता है कि फिर एक दो के भ्रष्टाचार की बात सामने आएगी तो शायद एक और वृद्धि हो जाए...

खैर केजरीवाल जी आप मानते हैं कि भ्रष्टाचार की आग पार्टी के मंत्रियों और विधायकों तक पहुंच ही गई और आग को शांत करने के लिए आपको कानूनी रास्ते का सहारा लेना पड़ा। केजरीवाल जी आप बड़े लोगों के समारोह में यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि एक लाख से ज्यादा का वेतन तो कुछ भी नहीं है... बाकी भत्ते हैं जो कुल मिलाकर 2.35 लाख रुपये प्रतिमाह पर पहुंचा रहे हैं।

हो सकता है कि आप जिन लोगों के बीच बैठकर इस वेतन और भत्तों को सही ठहरा रहे थे उन लोगों की नजर में यह वेतन बहुत कम हो, लेकिन केजरीवाल जी वोट देने में वालों का औसत आप निकालेंगे तो आप खुद हैरत में पड़ जाएंगे। वैसे आप आईआरएस रहे हैं, पत्नी भी आईआरएस हैं... सो आप नहीं जानते हैं कि 5000-10000 रुपये प्रतिमाह कमाने में लोगों को कितना पसीना बहाना पड़ता है।

आपने जब कमाई का फासला इतना कर दिया है तो एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है। अब आप पार्टी के नेता कैसे उन लोगों की नुमाइंदगी करेंगे जो आम लोग हैं। आज जो लोग इन लोगों को अपने बीच का नेता पाते हैं अब वे कैसे इनके करीब आएंगे। वैसे सत्ता सुख के कारण दूरियां बनती दिखने लगी हैं और यही हालात रहे तो यह फासला तो बढ़ना तय है।

एक सलाह
आप चाहे जो कहें दिल्ली के विधायकों की पेंशन 10000 से 15000 रुपये प्रतिमाह करने की क्या जरूरत थी। राजनीति करो भविष्य भी सुरक्षित? वैसे दिल्ली में विधवा महिला और बुढ़ों को कितनी पेंशन मिलती है, क्या उतने में उनका गुजारा हो पाता है। सरकार उनके बारे में कुछ नहीं सोचती। इस प्रकार के तमाम उदाहरण दिए जा सकते हैं। क्या विधायक के पेट और आम आदमी के पेट में भी अंतर होता है... वैसे जो पैसे आप बचा रहे हैं उन्हें विधायकों पर लुटाने के बजाय लोगों पर खर्च करते तो और अच्छा होता...

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