Sunday, September 4, 2016

Dear Kejriwal, Country will never forgive you (Article in Hindi)

अरविंद केजरीवाल तुमको ये देश कभी माफ नहीं करेगा

अरविंद केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री है. एक आईआरएस से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के सफर का हर दिन जैसे देश की जनता को धोखा देने का सफर है. अरविंद केजरीवाल को कौन जानता था. एक आईआरएस रहते हुए भ्रष्ट लोगों का साथ, खुद भ्रष्ट रहे या नहीं यह कोई नहीं जानता. ईमानदारी का तमगा अपने हाथों में लेकर चले. एनजीओ चलाई और एक दिन मैगसेसे पुरस्कार मिला.

बस चैनलों में अरविंद केजरीवाल छा गए. टीवी को जैसे एक नया कैरेक्टर मिल गया. कई चैनलों के लिए केजरीवाल कुछ दिनों के लिए बैनर बन गए. फिर, देश में भ्रष्टाचार का वो दौर चला जिसे कभी किसी ने सोचा नहीं था. आए दिन कांग्रेस की सरकार के भ्रष्टाचार सामने आने लगे. सवाल भ्रष्टाचार का नहीं था, ऐसा लगने लगा था कि देश का हुक्मरान अपने जेबें भरने के लिए जैसे देश का सौदा कर रहा है. ऐसा लगने लगा कि देश के हर आदमी का सौदा कर सत्ता में बैठे लोग अपना भविष्य सुधारने में लगे हुए है. जनता परेशान महंगाई से, कानून व्यवस्था से. भ्रष्ट लोग जेल जाने की बजाए, खुले आम कानून को ठेंगा दिखा रहे थे.

कानून व्यवस्था का ऐसा मजाक इस देश ने पहले नहीं देखा था, लाखों करोड़ों की दलाली करने वाले बेशर्म बनकर मीडिया में अपनी बेगुनाही की बात कह रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के जज जैसे किसी और दुनिया में रहने में चले गए हैं. आए दिन कई मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेकर जनता के दुख दर्द को दूर करने के बजाय कोर्ट ने आंखें मूंद ली हों. पुलिस में रिश्वत कोई नई बात नहीं रही है. लेकिन वह दौर जैसे देश के शासन का ऐसा समय रहा जिसमें लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी.

ऐसे में जब देश में चारों ओर निराशा का माहौल बना हुआ था. तब इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बैनर तले महाराष्ट्र के रालेगन सिद्धी गांव से एक बूढ़ा अन्ना हजारे नाम का एक शख्स दुनिया के सामने आया. यहां यह बताना जरूरी है कि दुनिया ने पहली बार अन्ना हजारे को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पटल पर देखा. वैसे महाराष्ट्र के कई जिलों में लोग उन्हें पहले से जानते रहे हैं. अन्ना वहां पर सामाजिक कार्यों में पहले से सक्रिय रहे हैं.

अन्ना हजारे की आवाज, उनका देश के प्रति समर्पण और लोगों के हित के लिए लड़ाई जज्बा अपनी जान की कीमत पर भी, देश देख रहा था. अन्ना ने देश में सभी बुराइयों के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार माना और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए देश में लोकपाल की जरूरत बताई. उन्होंने सरकार से लोकपाल कानून बनाने के लिए कहा. देश में लोकपाल की नियुक्ति की मांग की.

केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार का कार्यकाल था जिसके मुखिया मनमोहन सिंह थे. सरकार ने अन्ना की मांग को अनसुना कर दिया. धीरे-धीरे हालात यहां तक पहुंच गए कि अन्ना हजारे ने इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बैनर तले घोषणा कर दी कि जब तक देश की सरकार लोकपाल कानून नहीं लाती है वह दिल्ली में अनशन पर बैठेंगे. देश की मीडिया पहली बार किसी आंदोलन के साथ दिखाई दी. अन्ना का आंदोलन दिल्ली के रामलीला मैदान पर शुरू हो गया. अन्ना का अनशन शुरू हुआ और देश के मन में जो विद्रोह की लहर दबी हुई थी वह निकलकर सामने आ गई. देश ने देखा कि ऐसा जनसैलाब चारों और से देश कई कई राज्यों से निकलकर सामने आया कि सरकार पर आंदोलन के हर दिन के साथ दबाव बढ़ता गया.

अन्ना के आंदोलन के इन्हीं दिनों में अनशन में टूट रहे और बीमार अन्ना का अरविंद केजरीवाल ने दाहिना होने का दावा किया और मीडिया के जरिए देश में अपनी एक छवि बनाई. ईमानदारी और देश के पैसा बचाने, देश का पैसा देश की जनता की सेवा में लगाने, देश को वीआईपी कल्चर से मुक्ति दिलाने, वीआईपी भ्रष्ट और बाहुबली लोगों को दी जाने वाली सुरक्षा के नाम पर देश के धन को हो रहे अरबों के नुकसान से बचाने के नाम पर, समाजसेवा के नाम पर देश के कोष को नेताओं द्वारा लूटे जाने के नाम पर, सांसदों-विधायकों की सैलरी के नाम पर, इन्हीं सरकारी मकान दिए जाने के नाम पर, गाड़ियां दिए जाने के नाम पर... और  कितने ऐसे ही कामों के नाम पर अपनी छवि बनाई और अन्ना के साथ सरकार से बातचीत को तैयार हो गए. कांग्रेस सरकार ने अपनी ओर से पांच वरिष्ठ नेता जो खुद मंत्री भी थे, का नाम आगे किया.  सभी के सभी वकील थे, दांव पेंच में माहिर, बात क्या हुई ये अब तक केजरीवाल एंड टीम और सरकार के मध्य रहा. मीडिया में जो इन्होंने कहा वह देश ने सुना, समझा.

संसद ने अन्ना से आंदोलन समाप्त करने की अपील की और एक स्वर में लोकपाल को बनाने की बात कही. लोकपाल का कानून अब पास हो गया. अन्ना कितने खुश हैं यह कोई नहीं जनता. लेकिन वह आंदोलन का दौर देश के स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा बन गया. अन्ना पूरी दुनिया में सत्याग्रह का नया चेहरा बने. इस देश के लोगों गांधी जी को नहीं देखा, न ही उनके सत्याग्रह को देखा, लेकिन इसका एहसास अन्ना के सत्याग्रह से देशवासियों को हो गया.

एक तरह से देखा जाए तो आजाद भारत का यह सबसे बड़ा आंदोलन था जिसने देश के चंद भ्रष्ट और लालची लोगों को छोड़कर सभी के मन में देश को सुधारने की ललक जगी. सभी को एक उम्मीद दिखी कि देश के चंद हुक्मरानों को यह समझ में आ गया होगा कि जनता अभी भी अपने हक के लिए लड़ना जानती है. जनता अभी भी सही और गलत का फर्क करना जानती है. जनता अभी भी अच्छे और बुरे को पहचानती है.

माहौल बन गया. जनता के बीच छवि बन चुकी थी, जनता पहचानने भी लगी थी. इन सबके बीच अन्ना की बात को दरकिनार करते हुए अरविंद केजरीवाल और टीम ने एक राजनीतिक दल बनाया. और पार्टी दिल्ली के चुनावों में कूद गई. पता नहीं ऐसा क्या हुआ केजरीवाल जो अपनी जान की परवाह नहीं करते दिखाई दे रहे थे, जो अपने परिवार को भी देश की सेवा में छोड़ चुके से दिख रहे थे, वह आम आदमी बन गए और सरकार बनी कांग्रेस के समर्थन से और अब सबकुछ उन्हें आम आदमी की तरह चाहिए था. बड़ा घर, बड़ी गाड़ी, वीआईपी सुरक्षा, कई लाखों का वेतन (पहले विधायक घूस लेकर अपना खर्चा निकालते थे अब केजरीवाल सरकार लाखों का वेतन देकर सरकार की ओर घूस ही दे दी) और क्या कुछ नहीं...

आखिर इस देश के लोगों ने इतना कुछ सहा, गरीबों ने अपना पेटकाटकर आंदोलन को आग दी, अपने परिवार की खुशियों की कुर्बानी दी लेकिन तुम कहां से चलकर कहां आ गए. ये देश तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा...

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